ऊँची जातियो का आरक्षण... हरिशंकर परसाई

यह रचना श्री हरिशंकर परसाई जी की है जो उन्होंने करीब पचास साल पहले लिखी थी। मगर में समझता हु की ये आज के दौर में भी उतनी ही सटीक और वाजिब है।


पिछड़ी जातियो के लिए आरक्षण विरोधी आंदोलन के एक नेता मेरे पास आये थे। वे मेरा समर्थन चाहते थे। मैंने सोचा - ये या तो इस कारन से आये है की इन्हें पता चल गया है की में ब्राह्मण कुल में जन्मा हु या इसलिए की उन्हें मेरी न्याय बुद्धि पर भरोसा है। मेरे उपनाम "परसाई" से मेरी जाति का पता नहीं चलता। लोग सोचतें है की पारसा - पारसी से बना है ये परसाई। होगा कोई मुस्लमान या पारसी, मगर पता लगानेवाले पता लगा ही लेते है की में ब्राह्मण हु। एक बार हमारे एक बंधू ने मुझे और मेरे एक और मित्र को, जो उपनाम से घोषित ब्राह्मण है, घर पे भोजन के लिए बुला लिया। हम उनकी बैठक में बेठे, भीतर कुछ पूजा हो रही थी। उन्होंने जहा - ज़रा देर और। आज वाइफ के पूजा व्रत पुरे हुए है ना, तो पूजा के बाद ब्राह्मण भोज होगा। उन्हें हमारी जाती का पता लग चूका था। मुझे लगा की मित्र के नाते भोजन पर बुलाया है, मगर इसने तो हमे ब्राह्मण समझकर बुलाया था। मैंने प्रार्थना की, प्रभु यदि बब्राह्मण भोज करवाने से पुण्य मिलता हो तो आज हमें चांडाल बना दे। इस दुष्ट के हाथ पुण्य ना लगे जिसने हमे ब्राह्मण समझ रखा है।

मेरे उपनाम के साथ यही दिक़्क़त है - पांडे, मिश्रा, शर्मा नहीं। ना सक्सेना, श्रीवास्तव है। ना चौहान, अग्रवाल या माहेश्वरी। इधर इस विश्वविद्यालय में काम करने आ गया हु तो सब विभागों में शोध का विषय है - परसाई जी किस जाती के है। PhD के लायक काम हो गया है। शोध से पता चला की ब्राह्मण है। में विवश हु, कुछ नहीं कर सकता। इस समाज में ब्राह्मण धर्म परिवर्तन करके ईसाई या मुसलमान तो हो सकता है, मगर कायस्थ नहीं हो सकता। में कितनी भी घोषणा करूँ की में चमार हो गया, पर माना जाऊँगा ब्राह्मण ही।

आरक्षण विरोधी आंदोलन के नेता जिन्हें शर्मा जी कहे, अपनी मान्यता के बारे में काफ़ी आश्वत थे। कहने लगे, कैसा अन्याय है। काम नम्बर हो तो भी हरिंज लड़के-लड़की को मेडिकल और एंजिनीर कॉलेज में भर्ती कर लिया जाता है। नौकरी में भी जगह सुरक्षित है। फिर प्रमोशन की दस पोस्ट हो तो तीन उन्हें मिल जाती है। हम पढ़े लिखे योग्य लोग क्या इस लिए वंचित हो की हमने ऊँची जाती में जन्म लिया ?

में समझ गया - हज़ारों साल पहले ऊँची जाती ने यह माँ लिया था - जो कुछ भी समाज में उपलब्ध है, सब हमारा है। वंचित रहना नीची जातियों का धर्म है। मान, प्रतिष्ठा, धन - सब ऊँची जातियों का अधिकार है। स्कूल में मेरे साथ एक नाई का लड़का पढ़ता था। वह मुझसे ज़्यादा होशियार था। मुझे गणित पढ़ाने आता था और नक़ल भी कराता था। वह आता तो कहता - हरिशंकर नमस्ते। मेरे चाचा उसे डाँटा - तू नाई होकर नमस्ते करता है। पालागी किया कर। उन्हें क्या पता की उन जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण के भतीजे को वह नाई पढ़ाता और नक़ल कराता है।

मुझे एक एंजिनीर ने बताया - हमारे रेस्ट हाउस में एक दिन दो पड़ोसी जिलो के कलेक्टर ठहेर गए। दोनो युवा IAS - एक ब्राह्मण और दूसरा हरिजन। मेने ब्राह्मण कलेक्टर से कहा - सर, आप दोनो का खाना डाइनिंग रूम में लगवा दूँ ? वे  बोले - नहीं हम अपने कमरे में खायेंगे। वैसे तो शराब और मुर्ग़े से जाति-भेद मिटता है, मगर इन ब्राह्मण कलेक्टर ने जाती बचाकर शराब पी और मुर्ग़ा खाया। अगर हरिजन कमिशनर या सेक्रेटेरी होता तो ख़ुद ब्राह्मण कलेक्टर उन्हें कमरे से खाने के लिए बुला लाते। यह भेद एक पीढ़ी में तो नहीं मिटेगा। काम से काम तीन पीढ़िया लगेगी। इस कलेक्टर का लड़का एंजिनीर होगा और उसका लड़का डॉक्टर। रहन-सहन, जीवन-पद्धति बदलेगी। सांस्कृतिक स्तर बढ़ेगा। तीन पीढ़ी की उच्च्वर्गीयता उसे मोची से ब्राह्मण बना देगी।

मेने कहा - शर्मा जी, सब कही रेज़र्वेशन हो जाए तो कैसा रहे ? ऊँची जाती के लिए भी आरक्षण हो ?

बलात्कार हरिजन स्त्रियों से होते है। क्यों नहीं तीस फ़ीसदी बलात्कार ऊँची जातियों की स्त्रियों से हो। आख़िर उनका हक़ है। बलात्कार ऊँची जातियों के लोग ब्राह्मण ठाकुर राजपूत करते है। उनसे कहा जाए की पहले तीस फ़ीसदी अपनी जाती की स्त्रियों को निपटाओ, तब हरिजन स्त्रियों की तरफ़ बढ़ना।

शर्मा जी की आँखे क्रोध से लाल हो गयी। प्राचीन काल में इस विप्र-क्रोध से में भस्म हो जाता, मगर इस कलियुग में नहीं हुआ। ब्राह्मण ने वह तेज़ खो दिया है, क्यूँकि अब वह यज्ञ-कार्य छोड़कर बाटा शू की दुकान में नौकरी करता है और भंगी को भी अपने हाथ से जुटे पहनता है। मेरे शहेर में एक ज़िलेटिन फ़ैक्टरी है, जिसमें उत्पादन हड्डी से होता है। इसमें कायस्थ काम कर रहे है।धन की ताक़त और उत्पादन की पढ़धती से जाती टूट जाती है, पवित्रया भावना ख़त्म हो जाती है। आदमी  औज़ारों से सड़क पर जूते सीनेवाला चमार है। जुतो के कारख़ाने में चमार काम करे तो वह चमार नहीं, कारीगर होता है और ऊँची जाती के मध्यवर्गीयों में बैठता है।

शर्माजी ने कहा - परसों यहाँ रैन दुर्घटना हुई। दो गाड़ियाँ टकरा गयी। दोनो के ड्राइवर हरिजन थे और शराब पिए थे। बताइए भला ऐसा करते है ये लोग। मेने कहा - शराब पीकर तो ब्राह्मण भी गाड़ी चलाते है। में जनता हु। आप भी जानते है। नियम है की जब ड्राइवर एंजिन पर जाने लगता है तब उसकी साँस की परीक्षा की जाती है  की इसने ऐल्कहाल तो नहीं लिया है। ऐसी ही परीक्षा गाड़ी छोड़ने पर होनी चाहिए। पर यह नहीं होता। यानी प्रशासन ढीला है। हरिजन और ब्राह्मण दोनो ही पीकर चला लेते है।

शर्माजी को में कुछ भी नहीं समझा सका। ऐसे लोग अपने पक्ष के बारे में निश्चित होते है, मगर समाज के इस हिस्से के लिए आख़िर क्या किया जाए ? हज़ारों सालों से इन्हें ज्ञान विज्ञान से वंचित रखा गया है।

राम शमबुक का सर काटते रहे और द्रोणाचार्य एकलव्य का अँगूठा कटवाते रहे। इन लोगों को अछूत रखा, गंदी सेवाए करवाई। जीवन स्तर गटर में डाल दिया। आत्मा सनमान छिना। पशुवत इनसे  बुरा व्यवहार किया। इनके झोंपड़े जलाए। इनकी स्त्रियों से बलात्कार किया। सब ऊपर उठाते गए, और उन्हें लात मारकर धकेलते गए। सदियों इनका शोषण हुआ है। इनके साथ अन्याय हुआ है। लोकतंत्र आया है तो इन्हें जीवन सुधार की कुछ विशेष सिविधाएँ दी जा रही है। इस पर देशव्यापी ज़ुंज़ट झंझट खड़ी हो गयी है। आरक्षण विरोधी आंदोलन चल रहे है।

कहते है - नीची जाती के लोग बराबरी की स्पर्धा में अपना हक़ ले। ऐसा कहने वाले सदियों से "हेंडिकेप रेस" में अपने को आगे रखे है। आख़िर ढीबरी और बिजली के बल्ब में बराबरी की स्पर्धा कैसे हो सकती है ? हरिजन लड़का ढीबरी में पढ़ता है। ऊँची जाती का लड़का बिजली के प्रकाश में पढ़ता है। उसके पास पूरी किताबें नहीं होती। इसके पास ख़ूब किताबें होती है। यह टूइशन लगा सकता है। इसके माँ बाप पढ़े लिखे है, उसके अनपढ़ गँवार। यह प्रभाव या पैसे से नम्बर  बढवा सकता है। ढीबरी और बल्ब में बराबरी की स्पर्धा नहीं हो सकती।

रविंद्रंथ ने लिखा था - मेरे देश वासियों, तुमने अपने ही लोगों पर सदियों बहोत अत्याचार किए है। तुम्हें इस पाप का फल भोगना होगा। तो ब्रह्मणो, पाप का फल भोगो। चमार कलेक्टर के चरण छुओ।

जय हिंद।

Comments

  1. पुस्तक का नाम बताएंगे..??

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  2. harishankar parsai ko pata hi nahin tha ki sakahari brahman se kate huye murge dhone ko kaha jata hai...wo bhi desh ke sabse unche ganit ke sodh sansthaan mein jahan dalit ke saath kayasth bhi maujud hote hain

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