आरक्षण की गन्दी राजनीति

आज़ादी के ७० साल बाद भी, ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है की, ना तो किसी भी केंद्र सरकार ने या ना तो किसी राज्य सरकार ने "आरक्षण" और "आरक्षण" से होने वाली सामाजिक व आर्थिक उन्नति की समीक्षा की कोशिश की है। आजतक ये जानने का प्रयास तक नहीं हुआ है  के पिछड़े व अति पिछड़े वर्ग की उन्नति कहा तक हुई है।  कितने प्रतिशत लोग है जो इन वर्ग में आगे आये है और उनसे उनके सामाजिक स्तर और जीवन शैली में क्या बदलाव आये है। क्या आरक्षण का सही इस्तेमाल हो रहा है ? क्या आरक्षण ज़रूरतमंद को मिल  रहा है ? या आरक्षण का मज़ा सिर्फ वे लोग उठा रहा है जिन्हें आरक्षण की कोई ज़रुरत नहीं है।


"हम आरक्षण का समर्थन करते है, और समयानुसार इसकी समीक्षा के पक्ष में है। " - जाती मुक्त भारत।

बाबा साहेब आंबेडकर ने जब आरक्षण का प्रस्ताव रखा था तो उम्मीद की थी की इससे अपने देश के सामाजिक ढाँचे में कुछ फर्क पड़ेगा और वक़्त आने पर आरक्षण की ज़रुरत ही नहीं रहेगी।  मगर अफ़सोस के आज़ादी के बाद से सारे नेताओ ने आरक्षण को एक  राजनैतिक हथियार के रूप में घारण कर लिया।  जिसका उपयोग वे समाज को बांटने और चुनाव जीतने के रूप में करने लगे।

आज़ादी से पहले, राजनीति एक पवित्र शब्द हुआ करता था।  इसी शब्द ने न जाने कितने लोगो को आज़ादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया। लाखो लोगो ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए खुद के संपूर्ण जीवन को आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया। कुछ पूरी ज़िन्दगी जेल में गुज़ार गए तो कुछ फांसी के फंदे पर लटक गए। कितनो ने लाठियो की मार खायी और कितने गोली खा के मारे गए।  मगर इसी शब्द "राजनीति" ने सबको एकजुट करके अंग्रेज़ो की ग़ुलामी से आज़ादी दिलवाई।  आज इसी शब्द "राजनीति" से घिन्न आती है। आज राजनीति एक भद्दा  शब्द बन चूका है, ये उन लोगो के लिए है, जो भष्ट है, गुनहगार है, अवसरवादी है और ऐसे लोग राजनीति के जरिये अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है।  समाज को बाटने में इनको एक क्षण नहीं लगता।

हम मानते है की देश के सभी वर्ग को रोज़गार और शिक्षा की सामान तक मिले।  देश के सभी नागरिक को जन्म आधारित जाती और आर्थिक-सामजिक उच्च नीच से ऊपर उठ कर, सन्मानपूर्ण ज़िन्दगी जीने का मौक़ा मिले। हमने सर्व  शिक्षा अभियान व शिक्षा के अधिकार के कानून के तहत ये तो तय कर लिए की सबको सामान शिक्षा मिले।  मगर इसे ज़मीनी तौर पर लागू नहीं कर पाए।  सरकारी शिक्षा व्यवस्था की हालात दुनिया के सबसे पिछड़े देश की तुलना  में भी बदतर नज़र आती है।  इससे शिक्षा के माध्यम द्वारा कैसे समानता लायी जा सकती है ? जब तक प्राथमिक शिक्षण का स्तर नहीं सुधरेगा, कुछ भी बदलाव आने की काम ही उम्मीद है।

वे सारे लोग जो खुद जीवन में आगे नहीं बाद पाते वे अक्सर "आरक्षण" को गाली देते पाए जाते है।  क्या उनकी नाकामी के लिए आरक्षण ही ज़िम्मेदार है ? जो बचे IIT  और IIM  जैसे उच्च संस्थानों पर पहोचे है वे रातो रात आरक्षण की बदौलत आगे नहीं पहोचे।  उनकी भी बरसो की लड़ाई और संघर्ष रही होगी इस ऊंचाई तक आने के लिए।  बरसो की लगन और मेहनत ही किसी को भी इस ऊंचाई तक पहोच सकती है। क्या सरकारी उपक्रम और पाठशालाएं समाज के सभी वर्ग को ऐसी सुविधा दे पायेगी जहां हर बच्चा चाहे वो SC हो ST हो OBC हो या General  हो, सामान स्तर  पर रह कर शिक्षा पाए।  जिस दिन ये हो गया,  उस दिन आरक्षण की ज़रुरत नहीं रहेगी।  आज हो ये रहा है की अमीरो के बच्चे अच्छे संस्थानों तक पहोचने में सक्षम हो रहा है और सरकारी नाकामी की वजह से पिछड़े वर्ग और पिछड़ रहे है।  और यही कारण है की समाज के कुछ अगड़े वर्ग भी अब पिछड़े वर्ग में शामिल किये जाने की बात कर रहे है।  आरक्षण को नाबूद करने की जगह इसकी मांग  बढ़ती ही जा रही है।

भारत के ज़्यादातर राज्य संविधान द्वारा प्राप्त आरक्षण की अनुमित सीमा सीमा पर आ खड़े हुए है। तो अब कोई भी राजनितिक पक्ष द्वारा आरक्षण का प्रलोभल देना एक मिथ्या प्रचार है।  समाज को अधिकार है की वे अपनी परेशानी सरकार को बताये।  मगर इसका समाधान आरक्षण हरगिज़ नहीं है।  यदि सरकार सक्षम हो और प्राथमिक शिक्षा से ही हरेक बच्चे को शिक्षित करे तो देश का कोई भी प्रतिष्ठिक संस्थान योग्यता प्राप्त युवा को कही निराश नहीं करेगा।  मगर पहले समाज के सभी बच्चो को जाती के भेदभाव से ऊपर उठा कर साथ में एक जैसी शिक्षा देना ज़रूरी है।  जैसा अमेरिका में हो रहा है।

भारत की महान आरक्षण प्रणाली के बारे में आपके क्या विचार है ? अपने विचार, प्रश्न और सुझाव अवश्य साझा करे।  यदि आपको इस विषय पर कोई ज़िम्मेदारी दी जाती है, तो आप आरक्षण को आगे ले जाने या समाप्त करने की दिशा में क्या क्या बदलाव लाने की कोशिश करेगे ? सिर्फ ये कह देना की "आरक्षण ख़त्म कर देना चाहिए" समस्या का निवारण नहीं है। समाज में व्याप्त आर्थिक व सामाजिक उच्च नीच को ध्यान में रख कर सोचिये।

जय हिन्द। 

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