"मराठा क्रांति (मूक) मोर्चा" का बहिष्कार (Boycott Maratha Kranti (Muk) Morcha)


हम मराठा समाज के मूक मोर्चा और आंदोलन का विरोध और बहिष्कार करते है । जो हुआ वो निंदनीय है, मगर जो माँगे की जा रही है वो ना ही व्यावहारिक है और ना ही क़ानूनी । पढ़े क्यों...

दलित लड़कों द्वारा मराठा लड़की के बलात्कार की घटना शर्मनाक है । किसी भी सभ्या समाज को ये शोभा नहीं देता । ऊपर से दलित उत्पीड़न की धारा का डार दिखा कर किसी को डरा धमका कर ख़ामोश करवाना निहायती कायरना काम है । उम्मीद है पूलिस और क़ानून अपना काम ज़रूर करेगा और जब तक गुनहगारो को फाँसी ना मिले, किसी को चुप नहीं बैठना चाहिए ।

अब आते है "मराठा क्रांति (मूक) मोर्चा" की और और बात करते है उनकी माँगो पर।

१) तीनो बलात्कारी लड़कों को फाँसी दी जाए : ये माँग जायज़ है, मगर ये क़ानून का काम है की वो न्याय करे । हाल ही में देखा की कर्नाटक की एक बलात्कार की घटना में सप्रीम कोर्ट ने आरोपी को फाँसी से मुक्त करके सज़ा सात साल कर दी । जब क़ानून ही इतना कमज़ोर होगा तो बलटकारियों को प्रोत्साहन मिलना ही है । ये समस्या एक समाज या क्षेत्र को ना जोड़ कर पूरे देश की समस्या के तौर पर देखा जाए तो सरकार पर ज़्यादा प्रभाव पड़ेगा ।

२) SC/ST ऐक्ट (दलित उत्पीड़न प्रावधान) को ख़त्म किया जाए : सामाजिक समानता एक जटिल विषय है । SC/ST क़ानून एक ऐसा क़ानून है जो पिछड़ो और दबे हुए वर्ग को अवसर देता है की वो बाक़ी लोगों से कंधे से कंधा मिला कर चल सके । कुछ लोगों को अब इससे ऐतराज़ होने लगा है। यदि पिछले कुछ सालों के आँकड़े निकाले जाए तो SC/ST ऐक्ट का ज़्यादा दुरुपयोग कही नहीं दिखता। बल्कि इस क़ानून ने दलित सशक्तिकरण में बहोत योगदान दिया है । ये माँग बेहद नाजायज़ है की इस क़ानून को ख़त्म किया जाए । मराठा समाज को दूसरे वर्ग के बारे में सोच कर अपनी इस माँग पर पुनर्विचार करना चाहिए ।

३) मराठा समाज को आरक्षण मिले : आरक्षण किसी भी समस्या का समधान नहीं है। अगर लड़ना है तो बीमारी से लड़ो, बीमारी के लक्षणो से नहीं । आरक्षण पाकर मराठा समाज की उन्नति करना एक अस्थायी तारिका होगा। महेंगाई और ग़रीबी के ख़िलाफ़ लड़ाई करो । आर्थिक आधार पर आरक्षण किसी हद तक ठीक लगता है, मगर वो भी लम्बे वक़्त तक नहीं। जातिगत आरक्षण को बिलकुल भी बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। इससे समाज में कभी भी समानता नहीं आएगी ।

४) आत्महत्या करने वाले मराठा किसान के परिवार में से किसी को सरकारि नौकरी मिले : ये एक हास्यास्पद माँग है । इससे तो आत्महाठ्या को और बढ़ावा मिलेगा । आत्महत्या को रोकना है तो सरकार से माँग करो की फ़सल की सही क़ीमत मिले। अकाल के वक़्त सरकार से मदद माँगो। पानी संरक्षण के अलग अलग प्रयोग करो। सरकारी नौकरी मिलने से क्या होगा ? ये कोई स्थायी समाधान नहीं है ।

असल में, जाट  आंदोलन हो या गुर्जर आंदोलन या पातिदार आंदोलन या फिर ये मराठा आंदोलन। सबकी जड़ एक ही है, ग़रीबी और महेंगाई। इन सारी लड़ाईयों को जातिगत ना रख कर सबके लिए लड़ा जाए तो शायद कुछ हो। वरना ये तो सबके अपने अपने स्वार्थ की लड़ाई हो गयी।

सोचिएगा । अपने सूजाव ज़रूर दीजिएगा।

जय हिंद ।

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