जात बदल शादी - प्रेम स्त्री-पुरुष में नहीं होता, जाति-जाति में होता है।

आयैं हम ये ख़बरें पढ़ते रहते है की दलितों पर सावरणो का अत्याचार हो रहा है। हम इन घटनाओं के इतने आदि हो गए है की हमें अब बुरा भी नहीं लगता। मगर एक दलित युवक ने कुछ ऐसा कर दिया की पूरे ज़िले में सनसनी फैल गई। ख़बर अखबारो में छप गई।


हुआ यूँ कि दलित लड़का दूर किसी अनजान शहर में गया। वहाँ उसने सबको ख़ुद का परिचय किसी ऊँची जाती के व्यक्ति के तौर पर दिया और उस ऊँची जाती की किसी लड़की से शादी कर ली। अपनी पत्नी को बक़ायदा बिहा कर परिवार वालों की विदाई ले कर वो उसे अपने क़सबे ले आया।

कुछ समय बाद उस क़स्बों के लड़की-जातिवाद को इस बात का पता चला तो उन्होंने लड़की के पिताजी को ख़बर पहुँचा दी। लड़की के पिताजी आए। लड़की को अपने साथ लिया। दलित लड़के की पिटाई करवाइ और पुलिस के सुपुर्द कर दिया।

कहानी तो इतनी सी ही है। मगर इसके बड़े मज़े है। बाद में जो हुआ वह दिलचस्प है।

चूँकि लड़की एक हरिजन की पत्नी बन चुकी थी और साथ रहे तो शरीर-सम्बंध भी हो गया था, ऊँची जातिवालो ने लड़की को "शुद्ध" करके फिर उसे अपनी जाति का बना लिया। उसकी जाति के कई घरों में उसका भोजन कराया गया। और इस तरह उसका फिर से "जाति मिलन" हो गया।

अब प्रश्न यह है की, उस लड़की का क्या अशुद्ध हो गया था जो शुद्ध कराया गया ? उसने हरिजन के साथ रोटी खायी, सोयी और शायद उसके बच्चे की माँ भी बनेगी। फिर वो शुद्ध कैसे हो गयी ? वो युवक भी और युवकों की तरह ही होगा। उससे सम्बंध होने पर लड़की को वैसा ही अनुभव हुआ होगा जैसा उसे अपनी जाति के युवक के साथ होगा।

जाति तो दो ही है - नर और नारी ।

यदि लड़की को उस लड़के से प्रेम रहा होगा ओ वो अपनी "शुद्धता" पर ही रो रही होगी। अपनी जातिवालो को गाली दे रही होगै - इस बेमानी जाति का ही सत्यानाश हो जाए।

जाति बड़ी ही मज़े की चीज़ है । अगर जाति इतनी ही बुनियादी चीज़ है तो अलग-अलग जाति की अलग अलग गंध होती। ब्राह्मण की गुलाब की गंध, वैश्य की चम्पा की गंध। तब वह हरिजन को संघ कर ही पहचान लेते और ऐसी ग़लती किसी भी लड़की का बाप नहीं करेगा। या फिर हरिजन के सर पर एक सिंग होता तो लड़की का बाप आस्सानी से पहचान लेता।

और किसी भी लड़की को पूछने की ज़रूरत ना पड़ती - "तेरी जाति क्या है ? हमारी ही जाति का है ना ? दूसरी जाति का है तो मेरा तुझसे प्रेम नहीं हो सकता। प्रेम स्त्री-पुरुष में नहीं होता। जाति-जाति में होता है।"

इस देश का मज़ा ये है की यहाँ शुद्धीकरण से मुसलमान को हिंदू तो कर लिया जाता है, मगर ब्राह्मण, कायस्थ नहीं हो सकता। कोई ब्राह्मण कहे की में जाति बदलकर कायस्थ होना चाहता हु तो उसे नहीं होने देंगे।

प्रेमचंद के उपन्यास "गोदान" में एक पंडित मातादीन है। उनके चमारिन से सम्बंध है। पर उनकी जाति नहीं गयी। वे श्रेष्ठ ब्राह्मण ही बने रहे। उनका तर्क है - "में उस चमारिन के हाथ की रोटी तो नहीं खाता । कुछ लोग कहते है  - पर उस चमारिन का थूक तो चाटता है। पर थूक चाटने से जात नहीं जाती । और चूँकि पंडित मातादीन चमारिन के हाथ की रोटी नहीं खाते, इसीलिए वे शुद्ध है।

अपने कहने से कुछ नहीं होता, देखो जग बैराना। मेने तो यहाँ तक कह दिया की तू ब्राह्मण है तो क्या दूसरे द्वार से पैदा हुआ है  पर कोई नहीं सुनता। लोग इसी बात से ख़ुश है की हरिजन के साथ रहकर, सारे सम्बंध करके भी लड़की फिर से शुद्ध कर ली गयी है।


Comments