भयानक सूखा पड़ा है - दलीलों का।
मुद्दा चाहे जो भी हो, सारी बहस इसी बात पर आकर ख़त्म हो जाती है - "आप राष्ट्रवादी है या राष्ट्रविरोधी"...!!! इस दलील के बाद बहस करना बेकार हो जाता है, क्योंकि आप आगे कुछ भी बोलेंगे, सामने वाला बेतुकी बातें बोल बोल के झूठे राष्ट्रवाद के नाम पर आपको निचा दिखाता रहेगा।
बहोत लोगो से पूछने पर भी आजतक इस बात का जवाब नहीं मिल पाया की: ATM की कतार में खड़ा रहना और कश्मीर में सरहद पर खड़ा रहना एक समान कैसे हो सकता है?
ऊना में हुए दलितों पे अत्याचार हो, अख़लाक़ की हत्या, असहिष्णुता, JNU विवाद, रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी, गौहत्या, आर्थिक विमुद्रीकरण वगैराह वगैराह - मुद्दा कोई भी हो, इसमें राष्ट्रवाद जोड़ दो। बहस करना आसान।
"में" बनाम "तुम"
"मोदी भक्त" बनाम "मोदी विरोधी"
"राष्ट्रवाद" बनाम "राष्ट्र विरोध"
"सांप्रदायिक" बनाम "बिनसांप्रदायिक"
दिन प्रतिदिन हम दलील करने की प्रतिभा खोते जा रहे है। अगर आप सरकार के फैसले से सहमत नहीं है तो तैयार रहिये, गाली खाने को। सवाल तो पूछ ही नहीं सकते। ये हक़ आपको अब नहीं है। संविधान में जरूर है, मगर समझ लीजिये नहीं है।
चलिए अब आते है "विमुद्रीकरण" (Demonetization) के विषय पर। वैसे आपने अब तक मन बना ही लिया होगा की ये लेख लिखनेवाला "राष्ट्रविरोधी" ही है। लेकिन हो सके तो संभावनाओ को नज़रअंदाज़ किये बिना पढ़े।
सरकार का फैसला अंतिम है। किसी को भी इससे तकलीफ है तो उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में जा सकता है, कुछ लोग गए भी है। सरकार का फैसला संविधान से प्राप्त अधिकारों के अन्तर्गत है या नहीं इसका फैसला न्यायाधीश करेंगे। और ये आनेवाले दिनों में पता चल जायेगा जब इसका फैसला आएगा।
आइए समझते है की विमुद्रीकरण से क्या क्या फर्क पड़ सकता है। (ये सब सम्भावना है, दुनिया का सबसे अव्वल अर्थशास्त्री भी आज से दो साल बाद भारत की आर्थिक हालात क्या होगी, इसका सही से अंदाजा नहीं लगा सकता)
तत्काल कीमतों में भारी गिरावट :
शुरुआत में बाज़ार और रोजमर्रा की चीज़ों के भाव में भारी गिरावट होगी। और ये देखने में भी आ रहा है। कुछ कुछ जगह बार वस्तु के बदले वस्तु का व्यापार भी देखा जा रहा है। सोने के भाव, शेयर्स, कमोडिटीज, रियल एस्टेट के दाम गिरेंगे।
दीर्घकाल में महँगाई बढ़ेगी:
जब बैंको के पास इतना पैसा आएगा, बैंक ये पैसा बाज़ार में लोन के तौर पर निकलेगा। जिससे बहोत पैसा भारत के अर्थतंत्र में घूमेगा। इससे विकास ज़रूर होगा, मगर महँगाई भी बढ़ेगी। अब महँगाई की मार किसपे सबसे ज़्यादा पड़ती है ये इस पर निर्भर करता है की पैसा सबके पास जा रहा है या कुछ चुनिंदा लोगो के पास।
कुछ अन्य फायदे:
१. इससे सरकार को आगे के काले धन को ट्रेस करने में आसानी होगी
२. हथयारों की स्मगलिंग और आतंकवाद के लिए जा रहे पैसे पे लगाम लगेगी
३. फ़र्ज़ी पैसे को रोका जायेगा (शायद)
४. एक परिवर्तन होगा जिससे लोग कालेधन वाले को गलत निगाह से देखेंगे
५. कैशलेस ट्रांसक्शन को बढ़ावा मिलेगा
गेरफायदे :
१. लंबे समय तक गरीब और अत्यंत गरीब लोगो को भारी मुश्किल हालात से गुज़रना पड़ेगा
२. जो लोग रोजिंदा आमदनी पर जीते है, उनको अकल्पनीय यातना से गुज़रना पडेगा
३. इस कवायद में हज़ारो human hours व्यर्थ जायेंगे
४. यदि सामाजिक परिवर्तन ना हुआ तो भ्रष्टाचार बढ़ेंगे
अब देखना ये है की "फायदे" ज़्यादा असरकारक होते है या "गेरफायदे" . जैसा की आगे लिखा, अभी कुछ भी कह पाना गलत होगा. सिर्फ वक़्त तय करेंगा की ये फैसला सही था या एक बहोत बड़ी भूल।
आइए समझते है की विमुद्रीकरण से क्या क्या फर्क पड़ सकता है। (ये सब सम्भावना है, दुनिया का सबसे अव्वल अर्थशास्त्री भी आज से दो साल बाद भारत की आर्थिक हालात क्या होगी, इसका सही से अंदाजा नहीं लगा सकता)
तत्काल कीमतों में भारी गिरावट :
शुरुआत में बाज़ार और रोजमर्रा की चीज़ों के भाव में भारी गिरावट होगी। और ये देखने में भी आ रहा है। कुछ कुछ जगह बार वस्तु के बदले वस्तु का व्यापार भी देखा जा रहा है। सोने के भाव, शेयर्स, कमोडिटीज, रियल एस्टेट के दाम गिरेंगे।
दीर्घकाल में महँगाई बढ़ेगी:
जब बैंको के पास इतना पैसा आएगा, बैंक ये पैसा बाज़ार में लोन के तौर पर निकलेगा। जिससे बहोत पैसा भारत के अर्थतंत्र में घूमेगा। इससे विकास ज़रूर होगा, मगर महँगाई भी बढ़ेगी। अब महँगाई की मार किसपे सबसे ज़्यादा पड़ती है ये इस पर निर्भर करता है की पैसा सबके पास जा रहा है या कुछ चुनिंदा लोगो के पास।
कुछ अन्य फायदे:
१. इससे सरकार को आगे के काले धन को ट्रेस करने में आसानी होगी
२. हथयारों की स्मगलिंग और आतंकवाद के लिए जा रहे पैसे पे लगाम लगेगी
३. फ़र्ज़ी पैसे को रोका जायेगा (शायद)
४. एक परिवर्तन होगा जिससे लोग कालेधन वाले को गलत निगाह से देखेंगे
५. कैशलेस ट्रांसक्शन को बढ़ावा मिलेगा
गेरफायदे :
१. लंबे समय तक गरीब और अत्यंत गरीब लोगो को भारी मुश्किल हालात से गुज़रना पड़ेगा
२. जो लोग रोजिंदा आमदनी पर जीते है, उनको अकल्पनीय यातना से गुज़रना पडेगा
३. इस कवायद में हज़ारो human hours व्यर्थ जायेंगे
४. यदि सामाजिक परिवर्तन ना हुआ तो भ्रष्टाचार बढ़ेंगे
अब देखना ये है की "फायदे" ज़्यादा असरकारक होते है या "गेरफायदे" . जैसा की आगे लिखा, अभी कुछ भी कह पाना गलत होगा. सिर्फ वक़्त तय करेंगा की ये फैसला सही था या एक बहोत बड़ी भूल।
जय हिन्द।
Comments
Post a Comment