हिंदू धर्म मिशनरी धर्म क्यों नहीं रह पाया ? क्यों हिंदू धर्म में धर्मान्तरन नामुमकिन है ?

हिंदू धर्म मिशनरी था या था या नहीं ये एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। कुछ का मानना ​​है कि यह एक मिशनरी धर्म कभी नहीं था। दूसरों का मानना ​​है कि यह था। हिन्दू धर्म एक मिशनरी धर्म स्वीकार किया जाना चाहिए क्यूँकि यदि ये मिशनरी धर्म नहीं होता तो इतने बड़े देश मेन समान रूप से फैल नहीं सकता। आज यह एक मिशनरी धर्म नहीं है, यह भी एक तथ्य है जो स्वीकार किया जाना चाहिए है। सवाल इसलिए ये  नहीं की , हिंदू धर्म एक मिशनरी धर्म था या नहीं है। असली सवाल यह है कि क्यों हिन्दू धर्म एक मिशनरी धर्म होने के लिए संघर्ष नहीं कर पाया या नहीं कर पा रहा  है? मेरा जवाब यह है। हिन्दू धर्म एक मिशनरी धर्म तब नहीं रहा  जब जाति व्यवस्था हिंदुओं के बीच पली बढ़ी । जाति रूपांतरण के साथ असंगत है।


समुदाय के सामाजिक जीवन में कन्वर्ट करने के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण समस्या यह है कि रूपांतरण के बाद उस व्यक्ति की क्या जाती होगी और क्या उसे उस जाती में स्वीकार किया जाएगा?  क्लब के विपरीत एक जाति की सदस्यता विविध और सभी के लिए खुला नहीं है। जाति के कानून जाति में पैदा हुआ व्यक्ति को अपनी सदस्यता से निकाल सकते है और किसी और को शामिल करना तो नामुमकिन है। जाति स्वायत्त हैं।

यदि हम आज हिंदू धर्म की तुलना दूसरे धर्म जैसे की इस्लाम या बुद्ध या क्रिस्तीयन धर्म से करे तो समझ सकते है  की हिंदू को छोड़ के बकी सब धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देते है । ये अच्छी बात हाई की हिंदू धर्म ज़बर्दस्ती धर्म परिवर्तन को समर्थन नहीं देता। मगर इसकी जड़ में धर्म नहीं, जाति व्यवस्था हाई जो हिंदू धर्म को मिशनरी धर्म बनने से रोकती है। सबसे बदा प्रश्न ये है की किसी को भी हिंदू धर्म में कन्वर्ट करने के बाद उसे कौन सी जाति अपनाएगी ? क्या उसे किसी भी जाति में शामिल होने का अधिकार होगा ? और क्या उस जाति के लोग उसे वैसे ही अपनाएँगे जैसे की वो उनका ही जाति  के लोगों को अपनाते है ??

इस लेख का उद्देश्य हिंदू धर्म की प्रशांशा या हिंदू धर्म को मिशनरी धर्म को प्रोत्साहित करना नहीं है । हमारा उद्देश्य यह हाई की लोग समझे की किस तरह जाति व्यवस्था ने अलग अलग आयामों से कितनी जगह नुक़सान किया है ।

जय हिंद।

Comments