अम्बेडकर जयंती (१४ एप्रिल):
१४ एप्रिल आते ही हमारे नेता और कुछ लोगों को अम्बेडकर याद आने लगते है। अम्बेडकर की मूर्तियाँ और statues पर लगी धूल दूर की जाति है। प्रतिमाओं को आसानी से माला पहनायी जाए इस लिए सिड़िया लगायी जाति है। ऑफ़िस और घर के किसी कोने में पड़े अम्बेडकर के झंडे और बैनर को बाहर निकाला जाएगा।
मोबाइल, सोशल platforms पर अंबेडकरवादी विचारधारा के हज़ारों मेसिज प्रसारित की जायेंगे।
साल के ३६५ दिन मंदिरो में जा कर पूजा, पाठ, व्रत, कथा करवाने वाले, अम्बेडकर का नीला झंडा लिए "जय भीम" के नारे लगाते देखे जायेंगे। जिन्होंने कभी अम्बेडकर को ना पढ़ा और ना समझा ऐसे, मान्यवर श्री कांशीराम जी के पुस्तक चमचायुग के जीवंत पत्र के समान, नेताओ और पिछड़ो के आगेवनो के भाषणो की बाढ़ आ जाएगी।
१४ एप्रिल ख़त्म। अगले दिन, कोई अम्बेडकर को याद करने वाला नहीं है। यहाँ तक कि अम्बेडकर की प्रतिमाओं को पहनाये फूलो की माला सुख कर कचरा हो जाति है, जिसे अगले साल ली १४ एप्रिल तक हटाना वाला कोई नहीं है।
मित्रों, कुछ ऐसे ही मनाई जा रही है अम्बेडकर जयंती इतने सालों से। बस कुछ ऐसे ही इस बार भी अम्बेडकर जयंती मनाई जाएगी।
जाने अनजाने में बाबासाहब की विचारधाराओं के विपरीत, मनुवादी पद्धति से बाबासाहब की मूर्ति की पूजा और फूल माला से उनकी जयंती मनाकर हम उनका अपमान किए जा रहे है। जो तथागत बुद्ध, कबीर, रामदास और दूसरे महानायको के साथ हुआ, वोहि बाबासाहब के साथ हो रहा है।
यदि किसी इंसान का सम्पूर्ण विनाश करना है, तो पहले उसकी विचारधारा को ख़त्म करो, यही सरल नियम है जिसे बहोत लोग हासिल करने में लगे है।
समाज में बाबासाहब आज भी ज़िन्दा है मगर सिर्फ़ एक प्रतिमा बन कर, जो सिर्फ़ १४ एप्रिल को हाई याद आती है। विचारधारा तो कब की नष्ट हो चुकी है।
इस साल अम्बेडकर जयंती पर एक छोटी सी अपील है, हरेक युवा को साल में कम से कम एक बार बाबासाहेब द्वारा लिखे पुस्तकों में से एक पुस्तक अवश्य पढ़ना है। इंसान मर सकते है, मगर विचारधारा को हमें जीवित रखना है। यही होगी हमारी बाबासाहब को सही श्रदहधांजलि।
जय हिंद। जय भारत।
१४ एप्रिल आते ही हमारे नेता और कुछ लोगों को अम्बेडकर याद आने लगते है। अम्बेडकर की मूर्तियाँ और statues पर लगी धूल दूर की जाति है। प्रतिमाओं को आसानी से माला पहनायी जाए इस लिए सिड़िया लगायी जाति है। ऑफ़िस और घर के किसी कोने में पड़े अम्बेडकर के झंडे और बैनर को बाहर निकाला जाएगा।
मोबाइल, सोशल platforms पर अंबेडकरवादी विचारधारा के हज़ारों मेसिज प्रसारित की जायेंगे।
साल के ३६५ दिन मंदिरो में जा कर पूजा, पाठ, व्रत, कथा करवाने वाले, अम्बेडकर का नीला झंडा लिए "जय भीम" के नारे लगाते देखे जायेंगे। जिन्होंने कभी अम्बेडकर को ना पढ़ा और ना समझा ऐसे, मान्यवर श्री कांशीराम जी के पुस्तक चमचायुग के जीवंत पत्र के समान, नेताओ और पिछड़ो के आगेवनो के भाषणो की बाढ़ आ जाएगी।
१४ एप्रिल ख़त्म। अगले दिन, कोई अम्बेडकर को याद करने वाला नहीं है। यहाँ तक कि अम्बेडकर की प्रतिमाओं को पहनाये फूलो की माला सुख कर कचरा हो जाति है, जिसे अगले साल ली १४ एप्रिल तक हटाना वाला कोई नहीं है।
मित्रों, कुछ ऐसे ही मनाई जा रही है अम्बेडकर जयंती इतने सालों से। बस कुछ ऐसे ही इस बार भी अम्बेडकर जयंती मनाई जाएगी।
जाने अनजाने में बाबासाहब की विचारधाराओं के विपरीत, मनुवादी पद्धति से बाबासाहब की मूर्ति की पूजा और फूल माला से उनकी जयंती मनाकर हम उनका अपमान किए जा रहे है। जो तथागत बुद्ध, कबीर, रामदास और दूसरे महानायको के साथ हुआ, वोहि बाबासाहब के साथ हो रहा है।
यदि किसी इंसान का सम्पूर्ण विनाश करना है, तो पहले उसकी विचारधारा को ख़त्म करो, यही सरल नियम है जिसे बहोत लोग हासिल करने में लगे है।
समाज में बाबासाहब आज भी ज़िन्दा है मगर सिर्फ़ एक प्रतिमा बन कर, जो सिर्फ़ १४ एप्रिल को हाई याद आती है। विचारधारा तो कब की नष्ट हो चुकी है।
इस साल अम्बेडकर जयंती पर एक छोटी सी अपील है, हरेक युवा को साल में कम से कम एक बार बाबासाहेब द्वारा लिखे पुस्तकों में से एक पुस्तक अवश्य पढ़ना है। इंसान मर सकते है, मगर विचारधारा को हमें जीवित रखना है। यही होगी हमारी बाबासाहब को सही श्रदहधांजलि।
जय हिंद। जय भारत।
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